What is Laparoscopy in Hindi (लेप्रोस्कोपी क्या है)? आइये जानते है इस लेख मैं.
एक महिला अगर कुछ समय से गर्भवती होने की कोशिश कर रही है और कोई सफलता नहीं मिल रही है, तो यहां बांझपन के इलाज के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं और लेप्रोस्कोपी एक ऐसा तरीका है जिससे गर्भवती होने की संभावना को बढ़ाया जा सकता है।
लेप्रोस्कोपी एक इनवेसिव विधि है जिसका उपयोग रोग के निदान और बांझपन की समस्या का इलाज करने के लिए किया जाता है। इस सर्जिकल प्रक्रिया में डॉक्टर महिला के पेट में दो से तीन छोटे कट लगाता है। इस प्रक्रिया के लिए एक लेप्रोस्कोप का उपयोग किया जाता है, जो बहुत ही पतला सर्जिकल उपकरण होता है जिसमें कैमरा और प्रकाश होता है। कुछ जटिल मामलों में, डॉक्टर सर्जरी के लिए बड़ा चीरा भी लगा सकते हैं, और आपको कुछ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है।
बांझपन की समस्या के इलाज के लिए लेप्रोस्कोपी पहला सहारा नहीं है। डॉक्टर पहले विभिन्न अन्य तरीकों से बांझपन को ठीक करने अथवा उसके लिए विकल्पों का सुझाव देते हैं, उसके बाद भी गर्भवती नहीं होने पर डॉक्टर इनफर्टिलिटी के इलाज के लिए नैदानिक लेप्रोस्कोपी को अपनाने की सलाह दे सकता है।
इसमें कई मामलों में डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया के दौरान समस्या का निदान कर लेता है (हालांकि सभी मामलों में नहीं)। इसके अलावा निम्न कुछ बांझपन समस्याएं और हैं जिनके लिए डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की सिफारिश कर सकता है-
-यदि महिला में पीसीओएस या पॉलीसिस्टिक आवेरियन सिंड्रोम है, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर आवेरियन ड्रिलिंग की सिफारिश कर सकता है। पॉलीसिस्टिक आवेरियन सिंड्रोम से ओव्यूलेशन बाधित होता है और इसे ठीक करने के लिए डॉक्टर विभिन्न स्थानों पर अंडाशय को ड्रिलिंग से पंचर कर सकता है।
-यदि फाइब्रॉइड है जो तीव्र दर्द का कारण बनता है या फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध करता है और यहां तक कि गर्भाशय गुहा को भी प्रभावित करता है।
-यदि महिला में ओवेरियन अल्सर हैं जिससे फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध हो रही है और इससे गंभीर दर्द पैदा हो रहा है। कुछ मामलों में डॉक्टर सिस्ट को खत्म करने के लिए अल्ट्रासाउंड-निर्देशित सुई का सहारा ले सकते हैं, हालांकि बड़े एंडोमीट्रियल अल्सर व रिसाव को हटाने से ओवेरियन रिजर्व प्रभावित होता है।
यदि एंडोमीट्रियल डिपॉजिट नि:संतानता का कारण है, तो डॉक्टर उसे हटाने की सिफारिश कर सकता है।
यदि फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध हैं, तो डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक सर्जिकल विकल्प की सिफारिश कर सकता है। हालांकि लेप्रोस्कोपी विधि से नि:संतानता के उपचार की सफलता दर बहुत भिन्न -भिन्न है, खासकर ट्यूबल मरम्मत के मामलों में। यदि महिला को इस सर्जरी के बाद आईवीएफ के लिए जाना पड़ सकता है, तो बेहतर है कि वह लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया को छोड़ दें और आईवीएफ के लिए जाएं।
-यदि डॉक्टर को हाइड्रोसालपिंक्स [ ऐसी स्थिति जहां फैलोपियन ट्यूब विशिष्ट प्रकार की रुकावट से अवरुद्ध हो जाती है ] तब डॉक्टर ट्यूब को हटाने की सिफारिश कर सकता है।
-कुछ इनफर्टिलिटी डिफेक्ट का निदान लेप्रोस्कोपी से ही होता है।
-विभिन्न इनफर्टिलिटी कारणों की पहचान करने में लेप्रोस्कोपी से डॉक्टर पूरे उदर क्षेत्र को व्यापक रूप से देख सकते हैं।
-यह प्रजनन क्षमता के कुछ कारणों के उपचार में भी प्रभावी है जिसमें प्राकृतिक साधनों या अन्य बांझपन उपचार के विकल्पों से गर्भवती होने की संभावना को बढ़ा सकता है।
-यह तकनीक पेल्विक दर्द और असहज महससू करने से की समस्या से छुटकारा दिलाने में मददगार है।
-यह एंडोमीट्रियल डिपोजिट, स्कार ऊतक और फाइब्रॉइड को हटाने में भी मदद करता है।
-यह शल्य चिकित्सा पद्धति ओपन सर्जरी की तुलना में कम सर्जरी वाली है। इसमें कम दर्द, कम रक्त की हानि, छोटे कट और शीघ्र रिकवरी होती है।
- एक बार जब डॉक्टर लेप्रोस्कोपी की सिफारिश करता है, तो पहले प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया जाता है। एडवान्स में सर्जरी की तैयारी भी करनी पड़ सकती है। डॉक्टर इसके लिए अस्पताल में भर्ती कर सकता है, या इस प्रक्रिया के लिए अस्पताल बुला सकता है। सर्जरी से पहले कम से कम 8 से 10 घंटे तक भोजन नहीं करने के लिए कहा जाता है। जनरल निश्चेतना देकर इस प्रक्रिया को शुरू किया जाता है। प्रक्रिया शुरू होने से पहले, एक तार [आईवी] डाला जाएगा, और विभिन्न दवाओं के माध्यम से इसे कन्ट्रोल किया जाता है।
एक बार जब महिला निश्चेतना के प्रभाव में आती हैं, तो डॉक्टर प्रक्रिया शुरू करता है। पेट के क्षेत्र में कई छोटे चीरे लगाए जाते हैं। इन चीरों से डॉक्टर आपके पैल्विक अंगों के अंदर देखने के लिए लेप्रोस्कोप डालते हैं। कुछ मामलों में, डॉक्टर बायोप्सी के लिए ऊतक भी निकाल सकता है। श्रोणि अंगों के अलावा डॉक्टर पेट के अन्य अंगों की भी जांच करना चाहता है और इसके लिए कुछ और चीरे लगा सकता है। इस दौरान डॉक्टर सावधानीपूर्वक स्कार ऊतक, अल्सर, फाइब्रॉइड या एंडोमीट्रियल डिपॉजिÞट की तलाश कर लेता है। इसी तरह फैलोपियन ट्यूब में किसी भी तरह की रुकावट की जांच करने के लिए गर्भाशय ग्रीवा से कुछ डाई इंजेक्ट करते हैं। एक्टोपिक गर्भावस्था की संभावना को खत्म करने के लिए भी फैलोपियन ट्यूब की जांच की जा सकती है।
-लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया सामान्य ऐनेस्थिशिया के प्रभाव में की जाती है, जिसमें पूरी प्रक्रिया के दौरान कुछ भी महसूस नहीं होगा। हालांकि, एक बार शल्यचिकित्सा की प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद एनेस्थीसिया का प्रभाव कम होने पर चीरे वाली जगह पर तनिक दर्द महसूस हो सकता है। इसी तरह डॉक्टर द्वारा बायोप्सी लेने वाली जगहथोड़ा महसूस हो सकता है। उदर क्षेत्र में कार्बन डाइआॅक्साइड की वजह से पेट थोड़ा फूला हुआ महसूस कर सकते हैं। कंधों में दर्द का अनुभव हो सकता है। प्रक्रिया के दौरान सांस लेने के लिए गले में डाली गई ट्यूब के कारण गले में दर्द हो सकता है। ये बहुत आम चीजें हैं जो सर्जरी के बाद अनुभव कर सकते हैं और कुछ दिनों के साथ ये कम हो जाती है।
-यदि कोई जटिलताएं नहीं हैं, तो उसी दिन छुट्टी मिल सकती है। इस प्रक्रिया के बाद डॉक्टर कम से कम दो से तीन दिनों तक आराम करने की सलाह देगा। हालाँकि, पूरी तरह से ठीक होने में कुछ हफ़्ते लग सकते हैं, यदि कुछ मरम्मत भी की गई हो। शीघ्र स्वस्थ होने के लिए विभिन्न दवाएं दी जाती हैं, जिसमें एंटी-बायोटिक और दर्द निवारक भी शामिल हैं। इसमें चीरे के स्थान पर मवाद या तीव्र दर्द होने, बुखार 101 या उससे अधिक होने व गंभीर पेट दर्द और बेचैनी होने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
-किसी भी शल्य प्रक्रिया की तरह, लेप्रोस्कोपी से जुड़े कुछ जोखिम और दुष्प्रभाव भी हैं। यह देखा जाता है कि सौ में से औसतन एक या दो महिला में लेप्रोस्कोपी के बाद एक या दूसरी तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती है। यहां कुछ सामान्य रूप से अनुभव की गई सर्जरी की जटिलताएं इस तरह हैं।
-यदि लैप्रोस्कोपी के दौरान एक ऊतक निकाला जाता है, तो इसे आगे अन्य परीक्षणों के लिए दिया जाएगा। परीक्षण के परिणाम सामान्य या असामान्य हो सकते हैं। सामान्य परीक्षण के परिणाम आंतों की रुकावट, हर्निया, पेट में रक्तस्राव का संकेत देते हैं। कई बार जांच में असामान्यता सामने आती है।
अगर परिणाम असामान्य हैं तो लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में इस तरह से सामने आते हैं
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