पुरूष निःसंतानता – वीर्य विश्लेषण उपचार क्रम में पहला कदम
एक महिला अपनी संतान में जितना स्वयं को महसूस करती है उससे कहीं ज्यादा पिता उसमें खुद को ढूंढता है। महिला अपने एहसासों को किसी ना किसी रूप में व्यक्त कर देती है लेकिन पुरूष के लिए यह इतना आसान नहीं है । वह गर्भधारण नहीं होने की स्थिति में पत्नी की जांच ही करवाता है लेकिन अपनी समस्या को स्वीकार करने के लिए आगे नहीं आ पाता है, यहाँ तक की स्वयं की जांच करवाने में संकोच करता है । महिला में फर्टिलिटी की जांच के लिए अधिक टेस्ट किये जाते हैं वहीं पुरूषों में तो सिर्फ सीमन एनालिसिस से यह पता लगाया जा सकता है कि निःसंतानता का कारण क्या है।
संभोग में एक सामान्य पुरुष 20 से 50 करोड़ शुक्राणु एक बार में गर्भाशय के बाहर स्खलित करता है। इनमें से मात्र एक तिहाई की संरचना ही सामान्य होती है। इन्हें तेजी से तैरने (गतिशील होने) की जरूरत होती है ताकि वे फर्टिलाइजेशन का कार्य कर सकें। करोड़ों शुक्राणुओं में से केवल 50 से 100 शुक्राणु ही फैलोपियन ट्यूब में मौजूद अंडे तक पहुंच पाते हैं इनमें से भी दर्जन भर ही अण्डे की भीतर जाने का प्रयास करते हैं और कोई एक सफल हो पाता है।
कब करवाएं फर्टिलिटी की जांच – जब कोई कपल एक साल से अधिक समय से बिना किसी गर्भनिरोधक के प्रयोग से संतान प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहा हैं लेकिन गर्भधारण नहीं हो रहा है ऐसी स्थिति में उच्चस्तरीय लेब में दोनांे की जांचे करवानी चाहिए ।
महिला की जांचे – फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय और अण्डाशय के साथ खून की कुछ जांचे की जाती हैं।
पुरूष की जांच – पुरूष की फर्टिलिटी जांचने के लिए सिर्फ वीर्य विश्लेषण किया जाता है, जिसमें शुक्राणु की संख्या, गतिशीलता, आकार और जीवित शुक्राणुओं की संख्या आदि का परीक्षण होता है। सीमन एनालिसिस के लिए पुरूष को सिर्फ एक बार अस्पताल जाना होता है बार-बार अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
क्या देखा जाता है जांच में – पुरूष के वीर्य का सेम्पल लेकर निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है।
मात्रा- वीर्य में मौजूद शुक्राणुओं की संख्या कितनी है। निषेचन के लिए शुक्राणुओं की संख्या सबसे महत्वपूर्ण होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पुरूष के शुक्राणुओं की मात्रा 15 मीलियन प्रति एमएल से अधिक है तो यह सामान्य माना गया है, लेकिन इससे कम होने पर प्राकृतिक रूप से पिता बनने में समस्या आ सकती है।
गतिशीलता- शुक्राणुओं की गतिशीलता यानि रफ्तार/गति कैसी है। यदि किसी पुरूष के शुक्राणुओं की संख्या तो अच्छी है लेकिन कम ही शुक्राणु गतिशील हैं या उनकी गति कम है तो वे ट्यूब में मौजूद अण्डे तक पहुंच नहीं पाएंगे जिससे निषेचन नहीं हो पाएगा।
बनावट- शुक्राणुओं का आकार। इनकी संरचना में किसी तरह का विकार होने पर निषेचन नहीं हो पाता है । पिछले एक दशक में जीवनशैली, प्रदूषण, रेडिएशन से शुक्राणुओं के आकार में विकार की समस्या बढ़ गयी है। अगर शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता अच्छी है लेकिन बनावट सही नहीं है तो भी गर्भधारण में रूकावट आती है । नवीन तकनीक में प्रत्येक शुक्राणु के डीएनए की स्थिति भी देखी जा सकती है।
जीवित शुक्राणु – जीवित शुक्राणुओं की संख्या कितनी है। यदि कुल शुक्राणुओं की संख्या अच्छी है लेकिन मृत ज्यादा हैं और जो जीवित हैं उनमें भी गतिशीलता, बनावट में समस्या है तो यह चिंता का विषय है।
पुरूष निःसंतानता के मामलों में शुक्राणुओं की मात्रा, गतिशीलता व बनावट के अनुरूप उपचार प्रक्रिया निर्धारित की जाती है।
आईयूआई – यदि पुरूष के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बोर्डर लाईन यानि 15 मीलियन प्रति एमएल के आसपास हैं तो कृत्रिम गर्भाधान की सबसे पुरानी आईयूआई तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। इसमें स्पर्म को लेब में वाॅश करके पुष्ट शुक्राणुओं का चयन कर लिया जाता है और उन्हें पतली नली (कैथेटर) के द्वारा गर्भाशय में इंजेक्ट किया जाता है । इस प्रक्रिया के लिए महिला की समस्त रिपोर्ट सामान्य होनी चाहिए ।
आईवीएफ- पुरूष के शुक्राणु की मात्रा 5 से 10 मीलियन प्रति एमएल है तो आईयूआई उपचार कारगर साबित नहीं होगा ऐसी स्थिति में आईवीएफ फायदेमंद है। महिला के शरीर में अधिक अंडे बनाने के लिए हार्मोनल इंजेक्शन व दवाईयां दी जाती हैं फिर इन्हें निकाल कर उचित तापमान मंे लैब में रखा जाता है। इसके बाद पार्टनर के शुक्राणुओं का सेम्पल लेकर लैब में ही अण्डे को शुक्राणु से निषेचित करवाया जाता है, इससे बने भ्रूण को तीन से पांच दिन तक विकसित करने के बाद महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह निःसंतानता के मामलों में सबसे लोकप्रिय तकनीक है।
इक्सी- यदि पुरूष के शुक्राणु 5 मीलियन प्रति एमएल से कम हैं तो इक्सी तकनीक से लाभ हो सकता है, इसमें लैब में महिला के अण्डे में एक शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है जिससे निषेचन की संभावना अधिक रहती है। जो पुरूष अजूस्परमिया यानि निल शुक्राणु के कारण पिता नहीं बन पा रहे हैं वे भी अब अपने शुक्राणु से पिता बन सकते हैं । जिन पुरूषों के अण्डकोष में शुक्राणु बन रहे हैं लेकिन किसी कारण से बाहर नहीं आ पा रहे हैं वेे इक्सी के माध्यम से टेस्टीक्यूलर बायोप्सी से पिता बना जा सकता है।
पुरूष को अपनी समस्या साझा करने के लिए आगे आकर चिकित्सक से बात करनी चाहिए ताकि समस्या का पता लगाकर उपचार किया जा सके।
Articles
Guide to infertility treatments Semen Analysis
What are the minimum parameters of healthy semen?
The secret of life is happiness Every individual is starving for happiness ...
Pregnancy Calculator Tools for Confident and Stress-Free Pregnancy Planning
Get quick understanding of your fertility cycle and accordingly make a schedule to track it