इन विट्रो फर्टिलाइजेशन अथवा IVF एक ऐसी सहायक प्रजनन तकनीक है जो विशेषज्ञों द्वारा उन जोड़ों को सुझाया जाता है जो संतान की कामना करते हैं परन्तु प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में निरंतर प्रयासों के बाद भी असफल रहते हैं।
जहाँ एक ओर इस तकनीक से विश्व भर में 8 मिलियन से अधिक बच्चे जन्म ले चुके हैं, वहीं अभी भी यह तकनीक भारत में उतनी अधिक प्रसिद्ध नहीं है और इसका सबसे बड़ा कारण जानकारी का आभाव है। इसीलिए संतान की चाह रखने वाले दंपत्ति को जरुरत है की वे दोनों बेझिजक अपने प्रजनन विशेषज्ञ से खुल कर बात करें।
IVF महज एक प्रजनन उपचार नहीं बल्कि एक भावनात्मक यात्रा है जो एक सर्वोत्तम क्लिनिक की खोज तक ही सीमित नहीं है। क्लिनिक की प्रतिष्ठा के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना आवशयक है की वहाँ मौज़ूद डॉक्टरों की टीम कितनी अनुभवी है तथा आप उनसे अपनी समस्या की चर्चा कितनी सहजता के साथ कर पाते हैं।
इसके अलावा यह भी जानना महत्वपूर्ण है की आपको आपके प्रश्नो का उत्तर आपको किस प्रकार से मिलता है। एक सम्मानित क्लिनिक हमेशा IVF के उपचार को लेकर कोई भी तथ्य नहीं छुपाता तथा सभी प्रश्नो के उत्तर प्रदान करता है जैसे आईवीएफ से पहले टैस्ट, कारक जो सफलता दर पर प्रभाव डाल सकते हैं, उपचार का समय, तथा उपचार का खर्चा, आदि।
यह लेख आईवीएफ से पहले परीक्षण की व्याख्या करता है।
IVF की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के पहले डॉक्टर निम्लिखित परिक्षण करने का परामर्श दे सकते हैं:
आपका प्रजनन विशेषज्ञ कुछ सरल सरल हार्मोन रक्त परीक्षण की सलाह देता है जिसकी सहायता से यह ज्ञात किया जाता है महिला के शरीर में कितने अंडे मौजूद हैं। हार्मोन जैसे की फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH), एंटी मुलरियन हॉर्मोन (AMH), और एस्ट्राडियोल IVF उपचार की सफलता दर का अनुमान लगाने में सहायता करते हैं। जहाँ एक और AMH के स्तर से बचे हुए अंडो का पता चलता है, वहीं FSH अगर सामान्य से अधिक मात्रा में है तो इसका अर्थ है की डिम्बग्रंथि रिजर्व कम है।
हिस्टेरोसाल्पिंगो कंट्रास्ट सोनोग्राफी (Hysterosalpingo Contrast Sonography) एक आधुनिक और विशेष प्रकार का अल्ट्रासाउंड परिक्षण है जिसकी सहायता से फैलोपियन ट्यूब या गर्भाशय की स्थिति का मूल्यांकन किया जाता है।
यह परिक्षण वीर्य की गुणवत्ता को जांचने के लिए किया जाता है। इसकी सहायता से वीर्य में शुक्राणु की कुल गिनती, उनका आकार, गति, इत्यादि का पता लगाया जाता है। इस परिक्षण के आधार पर तय किया जाता है की ICSI या IUI का सहारा लिया जा सकता है या नहीं।
यह परिक्षण प्रोलैक्टिन तथा थायराइड हार्मोन के स्तर को मापता है। प्रोलैक्टिन स्तन के दूध के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है जबकि थायराइड हार्मोन शरीर के मेटाबोलिज्म के लिए आवश्यक है। अगर शरीर में इन हार्मोनो के स्तर असामान्य होते हैं तो गर्भाधान में कठिनाई होती है। स्तर को सामान्य करने के लिए डॉक्टर दवा देते हैं।
इसमें डॉक्टर यह पता लगाने का प्रयास करते हैं की कहीं किसी प्रकार संक्रमण तो नहीं। इस जांच में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सिफलिस और हेपेटाइटिस सी सम्मिलित है। ये संक्रमण भ्रूण के लिए जोखिम को बढाती है तथा गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकती हैं।
यह एक अभयास परिक्षण है जिसमें आईवीएफ की सफलता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इसमें डॉक्टर वास्तविक प्रक्रिया को करने से पहले ही मार्ग की पहचान कर लेते हैं। इस परिक्षण से गर्भाशय के व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है।
तो यह कुछ आईवीएफ से पहले के परीक्षण हैं। अधिक जानकारी के लिए आज ही संपर्क करें।
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