आज के समय में महिला के गर्भाशय व अन्य अंगों को हटाने के लिए हिस्टरेक्टॉमी ऑपरेशन प्रक्रिया का उपयोग अधिक किया जाता है। किसी महिला के गर्भाशय को हटा देने के बाद उसकी माहवारी नहीं आती है और वो गर्भधारण नहीं कर सकती है। महिला का यूट्रस एक नाशपाती की बनावट जैसा होता है, महिला के गर्भवती होने पर भ्रूण का जन्म तक विकास गर्भाशय में ही होता है। गर्भाशय की दो परते होती हैं एक एंडोमेट्रियम व दूसरी मायोमेट्रियम। हिस्टरेक्टॉमी में पूरा गर्भाशय, कुछ मामलों में अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब या फिर या गर्भाशय सरविक्स को हटाना शामिल किया जा सकता है। इस लेख में माध्यम से हम हिस्टेरेक्टॉमी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
हिस्टेरेक्टॉमी प्रक्रिया निम्न प्रकार से की जा सकती है।
1. आंशिक (सबटोटल) हिस्टेरेक्टॉमी - इसमें गर्भाशय को तो हटा दिया जाता है लेकिन सरविक्स को रहने देते हैं । सामान्यतया डॉक्टर द्वारा गर्भाशय ग्रीवा हटाने का सुझाव दिया जाता है क्योंकि इसमें कैंसर होने का डर रहता है इसके बावजूद कोई महिला चाहती है कि उसका सरविक्स रहने दिया जाए तो उसकी समय-समय पर जांच करवानी चाहिए ।
2. टोटल हिस्टरेक्टॉमी - इसमें पूरे गर्भाशय और सरविक्स यानि गर्भाशय ग्रीवा को हटा दिया जाता है।
3. रेडिकल हिस्टेरेक्टॉमी - ये आमतौर पर अंडाशय, सरविक्स, गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब के कैंसर के केसेज में उपयोग की जाती है।
1. महिला को माहवारी के दौरान अत्यधिक या असामान्य रक्तस्राव होता हो, इस समस्या के अन्य उपचारों में भी सफलता नहीं मिली हो।
3. एडिनोमायोसिस
4. माहवारी में अहसनीय दर्द जो अन्य उपचारों से ठीक नहीं हुआ हो।
5. गैर कैंसरयुक्त यूट्रस फाइब्रॉएड
6. यूट्रस पॉलीप्स (गर्भाशय की दीवार से जुड़ा गैर-कैंसरयुक्त असामान्य विकास)
7. लम्बे समय तक पैल्विक दर्द की स्थिति में जब अन्य उपचार उचित प्रतित नहीं हो
8. गर्भाशय का कैंसर या सर्वाइकल कैंसर की स्थिति में
9. गर्भाशय का असामान्य विकास
1. टेस्ट - डॉक्टर मरीज के लक्षणों के आधार पर कुछ टेस्ट करते हैं और उसकी मेडिकल हिस्ट्री भी ली जाती है।
2. पैप टेस्ट या सर्वाइकल साइटोलॉजी - महिला में असामान्य सर्वाइकल सेल्स या सर्विक्स के कैंसर के बारे में जानने के लिए ये टेस्ट किया जाता है।
3. पेल्विक अल्ट्रासाउंड - महिला के फर्टिलिटी अंगों की छवि प्राप्त करने के लिए पेल्विक अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। ये ओवेरियन सिस्ट, यूट्रस फाइब्रॉएड, या एंडोमेट्रियल पॉलीप्स के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है।
4. एंडोमेट्रियल बायोप्सी - एंडोमेट्रियल टीश्यु का एक सेम्पल लिया जाता है और इसे लैब में जांच के लिए भेजा जाता है ताकि एंडोमेट्रियल कैंसर या यूट्रस में किसी असामान्य कोशिकाओं के बारे में पता चल सके।
1. किसी भी चिकित्सा उपचार से गुजरने से पहले अपनी वर्तमान या पूर्व की मेडिकल कंडीशन के बारे में आपके डॉक्टर को बताएं।
2. डॉक्टर को पूर्व में ली गयी दवाइयों और वर्तमान में चल रही दवाओं के बारे में जानकारी दे।
3. डॉक्टर आपको कुछ दवाइयां बंद करने या नयी दवाइयां शुरू करने का सुझाव दे सकता है।
4. सर्जरी के कुछ घंटो पहले यानि कम से कम 8 घंटे पहले कुछ खाना-पीना नहीं करने की सलाह दी जाती है।
5. सर्जरी के पहले दिन हल्का भोजन व कब्जी रहित भोजन करना चाहिए ताकि मोशन में तकलीफ नहीं हो।
6. योनि की सफाई
7. एनीमा के माध्यम से पेट साफ किया जा सकता है (मल रहित)
8. सर्जरी से पहले और बाद में इंफेक्षन के जोखिम को कम करने के लिए इंट्राविनस एंटीबायोटिक दी जाती है।
1. वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी - इसमें योनि के शीर्ष के कट के माध्यम से यूट्रस को निकाल दिया जाता है। इस प्रोसेस में महिला को कोई बाहरी चीरा नहीं लगाया जाता है। यूट्रस रिमूव करने के बाद वैजाइना के अंदर घुलने वाले टांके (बाद में तोड़ने की जरूरत नहीं) लगाए जाते हैं। सर्जरी के बाद रोगी 2-3 दिन में घर जा सकता है। स्कार नहीं होने के कारण ये कॉस्मेटिकली बेहतर है।
2. लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी - आज के समय में अधिक उपयोग किया जाता है। इसमें लैप्रोस्कोप जो कि एक पतली ट्यूब होती है, इसके एक सिरे पर कैमरा लगा हुआ होता है। इसे नाभि के पास एक छोटे कट के जरिए पेट के निचले हिस्से में प्रविष्ट किया जाता है। कुछ दूसरे छोटे-छोटे चीरों के जरिए पेट में सर्जिकल उपकरण प्रविष्ट करवाए जाते हैं। योनि या पेट के कट के माध्यम से यूट्रस को छोटे-छोटे टुकड़ों में हटा देते हैं। सर्जरी के बाद मरीज की स्थिति को देखते हुए डॉक्टर एक या दो दिन में छुट्टी दे देते हैं। लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी में अधिक दर्द नहीं होता है ये मरीज जल्दी ठीक हो जाता है।
3. रोबोटिक-लैप्रोस्कोपिक हिस्टरेक्टॉमी - ये प्रोसिजर रोबोटिक मशीन की मदद से किया जाता है। महिला के पैल्विक एरिया को देखने के लिए पेट में एक लैप्रोस्कोप प्रविष्ट करवाया जाता है। प्रक्रिया में नाभि के आसपास के तीन से पांच छोटे-छोटे चीरों के माध्यम से सर्जरी के उपकरण प्रविष्ट करवाए जाते हैं। प्रक्रिया रोबोटिक उपकरणों द्वारा की जाती है जिसे सर्जन मॉनिटर और कन्ट्रोल करता है। इसमें भी लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी के समान रिकवरी मे ज्यादा समय नहीं लगता है।
4. एब्डोमिनल हिस्टेरेक्टॉमी - सबसे पुरानी तकनीक कहा जाता है। पेट के उपर छह से आठ इंच लंबा चीरा लगाया जाता है जिसके माध्यम से गर्भाषय निकाल लिया जाता है। इसमें सर्जन यूट्रस रिमूव करने के बाद टांके लगाकर या स्टेपल करके चीरा बंद कर देता है। यह प्रक्रिया असामान्य गर्भाषय, कैंसर के केसेज में की जाती है। इस प्रक्रिया बाद कुछ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है और लेप्रोस्कॉपी एवं रोबोटिक सर्जरी की तुलना में मरीज को ठीक में होने में लम्बा समय लगता है।
1. सर्जरी के बाद मरीज की स्थिति को देखते हुए एक या दो दिन हॉस्पिटल में भर्ती रखा जा सकता है।
2. प्रक्रिया के बाद कुछ दिनों तक ब्लीडिंग हो सकती है।
3. हिस्टेरेक्टॉमी में पेट पर लगने वाला चीरा कुछ दिनों में ठीक तो हो जाता है लेकिन पेट पर उसका निशान रहेगा।
4. सर्जरी के बाद पूर्णरूप से ठीक होने में करीब डेढ महीने का समय लग सकता है।
5. सर्जरी के बाद पूर्ण आराम की आवश्यकता नहीं है लेकिन ज्यादा आराम करें ।
6. सर्जरी के बाद खुद के छोटे-मोटे काम किये जा सकते हैं लेकिन भारी वस्तुएं नहीं उठाएं।
7. हिस्टेरेक्टॉमी के बाद छह सप्ताह तक शरीर को थकाने वाली गतिविधियों से बचें ।
8. सर्जरी के बाद शारीरिक संबंध फिर से शुरू करने से पहले कम से कम डेढ सप्ताह इंतजार करें।
9. सर्जरी के बाद माहवारी नहीं आएगी और गर्भधारण की संभावना नहीं होगी।
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