अगर आप देर रात तक मोबाइल चलाते हैं, टीवी देखते हैं या लगातार नाईट शिफ्ट में काम करते हैं तो संभल जाएं । यह कृत्रिम रोशनी अनिंद्रा की समस्या के साथ आपकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है। ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं समेत कई शोध रिपार्ट में यह सामने आया है कि हार्ड आर्टिफिशियल लाईट से फर्टिलिटी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मेलाटोनिन हार्मोन शरीर मंे पीनियल ग्लैंड से रिलीज होता रहता है, यह नींद आने में मददगार होने के साथ अण्डकोष के लिए भी फायदेमंद है । मेलाटोनिन अण्डोसर्ग के दौरान अंडों को क्षतिग्रस्त होने से बचाता व शरीर से फ्री रेडिकल्स को बाहर निकालता है । शाम के समय हाई लेवल का कृत्रिम प्रकाश खासकर शिफ्ट बदलने के दौरान नींद को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है इससे बाॅडी क्लाॅक डिस्टर्ब हो जाती है ऐसी स्थिति में दिमाग मेलाटोनिन कम प्राॅड्यूज करता है। इन दिनों लोग इलेक्ट्रोनिक गैजेट का सर्वाधिक उपयोग करते हैं यह कृत्रिम प्रकाश का बड़ा माध्यम है। यह प्रकाश मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करता है । शरीर में मेलाटोनिन का स्तर कम होने के कारण बाॅडी क्लाॅक अव्यवस्थित हो जाती है इससे नींद व महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। आर्टिफिशियल लाइट से पीरियड्स भी प्रभावित होते हैं।
मोबाईल आज के दौर में हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, मनोरंजन और इर्फोमेशन के मामले में इसने टीवी को भी पछाड़ दिया है। जहाँ लोगों को मोबाईल पर तुरन्त जानकारी उपलब्ध करवाने में सोशल मीडिया ने आसानी कर दी है वहीं परिवार में इससे दूरिया भी बढ़ रही हैं। दिनभर काम के तनाव और भागदौड़ के बाद दम्पती देर रात तक मोबाईल को अधिक समय देते हैं। पति-पत्नी में सब कुछ ठीक होने के बाद भी कंसीव करने में समस्या आती है यह समस्या खासकर उन दम्पतियों में ज्यादा सामने आ रही है जिसमें ंपति-पत्नी दोनों वर्किंग हैं, नाईट शिफ्ट में काम करते हैं, शाम से देर रात तक कृत्रिम लाईट में काम करते हैं । नींद शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के लिए आवश्यक है लेकिन दम्पतियों की नींद पूरी नहीं हो पाती है।
महिलाएं जो गर्भधारण करना चाहती हैं वे नींद से काॅम्प्रोमाइज नहीं करें और अंधेरे मंे कम से कम 8 घंटे की नींद लें जिससे मेलाटोनिन स्त्रावित हो और शरीर की बाॅयोलाॅजिकल क्लाॅक नहीं बिगडे़ । सोने की सही आदत महिलाओं मंे हार्मोन के स्तर को अंसतुलित नहीं होने देती जिससे फर्टिलिटी को फायदा होता है। कृत्रिम रोशनी से पुरूषों के शुक्राुणओं की क्वालिटी भी प्रभावित होती है।
गर्भधारण में समस्या पैदा करने के अलावा इलेक्ट्राॅनिक डिवाइस से निकलने वाली नीली रोशनी का प्रेग्नेंट औरतों और गर्भ में पल रही संतान पर भी नकारात्मक असर पड़ता है । भ्रूण के विकास के लिए महिला की नींद पूरी होना आवश्यक है, अगर भ्रूण को एक तय मात्रा में माँ से मेलाटोनिन हार्मोन नहीं मिलता है तो उसमें कुछ रोगों जैसे – एडीएचडी और आॅटिज्म की आंशका रहती है।
अच्छी नींद के लिए हेल्दी डाइट भी आवश्यक है । साथ ही जहाँ तक हो सके कृत्रिम रोशनी से दूर रहें, आपस मंे बात करें । महिला में मेलाटोनिन की समस्या को ज्यादा दिनों तक नजरअंदाज किया जाए तो अनिंद्रा, तनाव, आवेरियन और यूटेराइन ब्लड सप्लाई अच्छी नहीं होना, यूटेराइन लाईनिंग नहीं होना और पुरूषों में शुक्राणुआंे की गुणवत्ता कम होने की समस्या आती है।
इस तरह की समस्या में कंसीव नहीं होने पर फर्टिलिटी एक्सपर्ट से कन्सल्ट करें
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