निःसंतानता कि समस्या दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही है । इसका मुख्य कारण है ,हमारी बदलती जीवन प्रणाली ।सामाजिक तथा वैयक्तिक जीवन शैली इस प्रकार से बदल गई है कि इन का प्रतिकूल परिणाम आपसी संबंध ,कुटुंब व्यवस्था एवं गर्भधारण पर हो रहा है । दुनिया में बढ़ता वैश्विक तापमान ,बदलती हुई कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा , बढ़ती उम्र में शादी , आपसी संबंधहो मैं अनावश्यक प्रतियोगिता और इसके परिणाम स्वरूप बढ़ता हुआ मानसिक तनाव हार्मोनल असंतुलन आदि से बांझपन की समस्या में बढ़ोतरी हो रही है ।
यह तो हम जानते ही हैं कि किसी भी बीमारी का इलाज तभी संभव है ,जब हमें कारणों का पता हो ,ठीक उसी तरह निःसंतानता कि समस्या के इलाज के लिए सबसे पहले जांच करना जरूरी है ,जिससे हमें कारण का पता चले ।
70 से 80% दंपत्ति में कारण का पता चल जाता है जिससे उनका इलाज करने में सहूलियत होती है ।यदि किसी जोड़े में उनकी सारी जांचे सही आती है तब सबसे पहले उन्हें जीवन शैली में बदलाव के लिए कहा जाता है, जैसे व्यायाम करना ,जंक फूड कम से कम खाना, हरी ताजी सब्जियां और फलों का सेवन ,धूम्रपान न करना आदि।इन सब बदलावों से हार्मोनल इंबैलेंस काफी हद तक ठीक हो जाते हैं ,जिससे उन्हें संतान प्राप्ति हो सकती है।यदि इन सब के बावजूद सफलता हासिल नहीं होती है ,तब ओव्यूलेशन की दवाइयां ,आईयूआई या आईवीएफ का सहारा लिया जा सकता है।
जिन जोड़ों में कारण का पता चल जाता है ,तब उनका इलाज कारण के अनुकूल होता है । यदि किसी महिला के अंडे बनने में परेशानी, जांचों में पाई जाती है तब ओव्यूलेशन की दवाइयों का सहारा लिया जा सकता है पर इन दवाइयों का सेवन 3 से 6 महीनों से ज्यादा नहीं करना चाहिए ।
आईयूआई की तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर उन जोड़ों में किया जाता है जिनमें या तो अंडे सही समय पर फूटते नहीं है या पुरुष के शुक्राणु में कुछ कमी हो, जैसे शुक्राणु की संख्या 10 से 15 मिलीयन प्रति मिलीलीटर लीलीटर का होना आदि । परंतु आईयूआई करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि स्त्री की अंडा वाहक नली खुली हो । आईयूआई प्रक्रिया में पुरुष के वीर्य से अशुद्धियां हटाई जाती हैं और फिर सक्रिय शुक्राणु को एक प्लास्टिक की मदद से महिला के गर्भाशय में ओव्यूलेशन के समय डाला जाता है । आईयूआई की सफलता दर 10 से 15% ही होती है ,इसलिए यदि किसी का 3 -6 बार आईयूआई करवाने के बावजूद सफलता हासिल नहीं होती है तब उन्हें आईवीएफ का सहारा लेना चाहिए ।
आईवीएफ की तकनीक में महिला के अंडाशय में से एक सुई और अल्ट्रासाउंड की मदद से अंडे बाहर निकाले जाते हैं और उनके पति के शुक्राणु से मिलाकर इमब्रायलॉजी लैब में भ्रूण बनाया जाता है ।इस 3 से 5 दिन वाले भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है जिससे उन्हें संतान सुख प्राप्त होती है । इस तकनीक की सफलता दर आजकल एडवांस इमब्रायलॉजी लैब और तकनीकों के कारण 70 से 80% हो गई है । आईवीएफ की तकनीक उन नि:संतान दंपतियों के लिए बेहद लाभकारी साबित हुई है ,जिनकी दोनों नलिया बंद हो गई हो , अंडे बनने में परेशानी हो या अंडों की मात्रा में कमी हो ।यह उन पुरुषों के लिए भी बहुत लाभदायक है जिनके वीर्य में शुक्राणु 10 मिलियन प्रति मिलीलीटर से कम हो या स्वस्थ शुक्राणु में कमी हो आदि ।
वैसे पुरुष जिनमें वीर्य में शुक्राणु की मात्रा 5 मिलियन प्रति मिलीलीटर से भी कम है या निल शुक्राणु की समस्या से वह ग्रसित हैं वैसे पुरुषों के लिए इक्सी की तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसकी मदद से वह संतान सुख प्राप्त कर सकते हैं । इस तकनीक में एक भ्रूण बनाने के लिए केवल एक अंडे और एक शुक्राणु की ही जरूरत होती है क्योंकि एक शुक्राणु को एक सुई के माध्यम से एक अंडे में इंजेक्ट किया जाता है । जिन दंपतियों में जेनेटिक प्रॉब्लम्स होते हैं उनमें आईवीएफ के द्वारा तैयार किए गए भ्रूण की पृ इंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग की जा सकती है जिससे उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो ।
अतः आज के युग में किसी भी दंपत्ति के जीवन से निःसंतानता को दूर हटाने के लिए बहुत सारे विकल्प हैं । इसके निवारण हेतु विज्ञान विश्वास और श्रद्धा ही मूल मंत्र है ।
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