निःसंतानता के ईलाज के क्षेत्र में कार्यरत इन्दिरा आईवीएफ ग्रुप के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गयी है। देश के ख्यातिप्राप्त राष्ट्रीय समाचार चैनल ने हेल्थ केयर लीडरशिप अवार्ड में इन्दिरा आईवीएफ को बेस्ट फर्टिलिटी चैन अवार्ड से सम्मानित किया है और इन्दिरा आईवीएफ ग्रुप के चैयरमेन तथा वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अजय मुर्डिया को हेल्थ केयर लीडरशिप अवार्ड के तहत हेल्थ केयर पर्सनर्लिटी ऑफ दी ईयर सम्मान से अंलकृत किया है। डॉ. मुर्डिया का समारोहपूर्वक अभिनन्दन किया गया | इसके आलावा हाल ही में टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा निःसंतानता और उसके उपचार के क्षेत्र में कार्यरत अस्पतालों करवाये गये ऑल इण्डिया फर्टिलिटी एण्ड आईवीएफ रेंकिंग सर्वे में इन्दिरा आई वी एफ ने देश के विभिन्न अस्पतालों में पहला स्थान पाया है |
निःसंतानता हमारे देश की बड़ी बीमारियों में शामिल हो गयी हैं देश में इसके उपचार केन्द्रों की कमी है और कम ही सेंटर्स में बांझपन उपचार को लेकर अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
निःसंतानता क्या है – देश में बांझपन क्या है और इसका उपचार क्या हो सकता है इसके लिए देश भर में नयी क्रान्ति लाने का काम किया है इन्दिरा आईवीएफ ने । एक साल तक बिना किसी गर्भनिरोधक के इस्तेमाल से प्रयास करने पर भी गर्भधारण नहीं होना निःसंतानता है। प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं होने की स्थिति में फर्टिलिटी एक्सपर्ट से कन्सल्ट करना चाहिए और पति-पत्नी दोनों की जांचों के बाद उपचार आरम्भ कर संतान प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। नि : संतानता के निम्न उपचार विकल्प उपलब्ध हैं |
आईयूआई – पत्नी की सारी रिपोर्ट्स नोर्मल होने लेकिन पति के शुक्राणु सामान्य से थोड़े कम होने पर आईयूआई तकनीक उपयोगी लाभदायक साबित हो सकती है। इसमें पति के स्वस्थ शुक्राणुओं का चयन कर अण्डे फुटने के समय एक पतली ट्यूब से महिला के गर्भाशय में शुक्राणओं को इंजेक्ट किया जाता है, जिससे शुक्राणु अंडे में प्रवेश कर जाता है । दो या तीन बार आईयूआई में सफलता नहीं मिलने पर आईवीएफ तकनीक की ओर रूख करना चाहिए इसकी सफलता दर अधिक है।
आईवीएफ – प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं होना, एक बार संतान होने के बाद दूसरी संतान प्राप्ति में कठिनाई होना, माहवारी अनियमित या बंद होना, ट्यूबों का खराब या बंद होना, अंडो का न बनना, बच्चेदानी में विकार, पहले कोई बीमारी रही हो और आईयूआई में सफलता नहीं मिलने पर आईवीएफ तकनीक अधिक असरदार साबित हो सकती है। इसमें इंजेक्शन देकर महिला के अण्डाशय में सामान्य से अधिक अण्डे बनाये जाते हैं फिर उन्हें शरीर से निकाल कर लेब में रखा जाता है और पुरूष के गुणवत्तायुक्त शुक्राणुओं को इनके सामने छोड़ दिया जाता है जिससे शुक्राणु अण्डों में प्रवेश कर जाते हैं और निषेचन हो जाता है । दो तीन दिन तक भ्रूण लेब में विकसित होता है इसके बाद उसे पुनः महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है जिससे गर्भधारण हो जाता है। भ्रूण प्रत्यारोपण के बाद सारी प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से गर्भधारण के समान ही है।
इक्सी – पुरूष निःसंतानता के लिए कम या निल शुक्राणु बड़े कारण हैं। पुरूष के वीर्य में शुक्राणु की मात्रा बहुत ही कम होने पर इक्सी तकनीक लाभदायी हैं इस तकनीक में पुरूष के वीर्य से एक स्वस्थ शुक्राणु लेकर उसे अण्डे में इजेक्शन के माध्यम से छोड़ा जाता है जिससे निषेचन हो जाता है इक्सी में गर्भधारण की संभावनाएं अधिक रहती हैं इक्सी तकनीक से वे पुरूष भी पिता बन सकते हैं जिनके शुक्राणु कम हैं या निल है। कई पुरूषों के अण्डकोष में शुक्राणु बनते तो हैं लेकिन बाहर नहीं आ पाते हैं, इस तकनीक से उन पुरूषों के अण्डकोष से शुक्राणु लेकर पिता बना जा सकता है।
ग्रुप के चेयरमेन डॉ. अजय मुर्डिया का कहना है कि निःसंतानता को लेकर जो आंकडे सामने आ रहे हैं चिंताजनक है अभी देश में करीब 28 मिलियन दम्पती निःसंतान है इनमें से एक तिहाई मामलों में महिला और एक तिहाई में पुरूष बांझपन के जिम्मेदार हैं। मेडिकल कारणों के साथ आधुनिक जीवनशैली इसका बड़ा कारण है। बांझपन का ईलाज मौजूद होने के बाद भी मात्र एक प्रतिशत दम्पती ही इसे अपना रहे हैं इसका कारण है जागरूकता का अभाव। इन्दिरा आईवीएफ ने बांझपन और उसके उपचार के प्रति जागरूकता लाने के लिए निःसंतानता भारत छोड़ो अभियान का आगाज कर पूरे देश में 20 राज्यों के 726 शहरों में 1725 से अधिक निःशुल्क निःसंतानता परामर्श शिविरों का आयोजन किया है जिसमें 58000 से अधिक निःसंतान दम्पतियों ने परामर्श का लाभ लिया है। देश में 150 + सेंटर, 150 से ज्यादा चिकित्सकों की टीम, 100 से अधिक भ्रूण वैज्ञानिक, 2000 से ज्यादा कुशल स्टाफ के दम पर इन्दिरा आईवीएफ ने आईवीएफ उपचार में उच्चतम सफलता दर दर्ज करवायी है।
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