जब किसी कपल को यह पता चलता है कि वे प्राकृतिक रूप से पेरेन्ट नहीं बन सकते तो उनकी दुनिया वीरान हो जाती है। वे जितनी शारीरिक पीड़ा सहन करते हैं उतनी ही मानसिक । ऐसे हताश दम्पतियों के बुझते चिराग को आईवीएफ तकनीक ने रोशन कर दिया है, दुनियाभर में प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में असमर्थ 80 लाख से ज्यादा दम्पतियों को इससे संतान सुख मिल चुका है लेकिन कुदरती गर्भधारण की प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से करना आसान नहीं है। कृत्रिम गर्भाधान में कई बातों का अपना महत्व है जिनमें से एक है भ्रूण को लैब में मिलने वाला तापमान और वातावरण ।
प्राकृतिक रूप से निषेचन की प्रक्रिया फैलोपियन ट्यूब में होने के पश्चात् भ्रूण गर्भाशय में जाकर चिपक जाता है और वहीं विकसित होकर जन्म लेता है। आईवीएफ में निषेचन की प्रक्रिया को शरीर से बाहर लैब में किया जाता है । भ्रूण को सही तरीके से विकसित होने के लिए माँ के शरीर में मिलने वाला तापमान और वातावरण यहां भी समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए अन्यथा परिणाम नकारात्मक आ सकते हैं। आईवीएफ तकनीक के क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर में भ्रूण को वही एहसास और अनुकूलता मिलती है जो माँ के शरीर में होती है। पिछले कुछ वर्षों में आईवीएफ की सफलता बढ़ाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
आधुनिक समय में तकनीकियों ने कई ऐसे कार्यों को आसान कर दिया है जिसमें प्रकृति से हार मिलने पर कुछ वर्षों पहले तक कुछ नहीं किया जा सकता था । तकनीकी दौर में अनुपम आविष्कार है एम सेल क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर। यह विशिष्ट चैम्बर माइक्रोस्कोपिक वर्क स्टेशन होते हैं इसमें लम्बे समय तक अण्डे, शुक्राणु और भ्रूण को संतुलित,स्थिर और वीओसी मुक्त वातावरण उपलब्ध होता है । इसके निर्माण में विशेष ध्यान देकर यह देखा जाता है कि भ्रूण को कोई नुकसान नहीं हो। एक समान तापमान और आर्द्रता को एक पंखे से नियन्त्रित किया जाता है । हवा को शुद्ध करने के लिए हेपा और चारकोल आधारित फिल्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है।
आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान निषेचन के लिए अण्डे को शरीर से बाहर निकाला जाता है, तापमान बदलने से इसकी क्वालिटी में नुकसान होने की आशंका रहती है, जिससे बाद में भ्रूण की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है। इस प्रक्रिया का उपयोग करने पर अंडे, शुक्राणु तथा भ्रूण को वही तापमान और वातावरण मुहैया करवाया जाता है जो उन्हें शरीर के अंदर मिलता है। दम्पती के सेम्पल को संतुलित वातावरण में संभालकर रखने से इनकी गुणवत्ता में कमी नहीं आती है। इसमें साफ सुथरा माहौल होने से एग्स, स्पर्म और एम्ब्रियो को किसी तरह के संक्रमण और गंदगी का खतरा नहीं रहता हैं और निषेचन (फर्टिलाईज़ेशन) आसानी से होता है। इस चैम्बर में 5 प्रतिशत ऑक्सीजन, 6 प्रतिशत कार्बनडाईऑक्साइड और 37 डिग्री सेल्सियस तापमान होता है जो गर्भ के तापमान के समान ही है। नियन्त्रित कार्बनडाईऑक्साइड, तापमान व आर्द्रता और विशिष्ट प्रकार का माहौल मिलने से फर्टिलाईज़ेशन और विकास की प्रक्रिया को अनुकूलता मिलती है।
क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर से पहले आईवीएफ अपनाने वाले दम्पतियों को सामान्यतया दो-तीन प्रयासों की सलाह दी जाती थी क्योंकि तापमान के असामान्य होने की संभावना के कारण भ्रूण के खराब होने का खतरा रहता था । क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर ने असमान तापमान और वातावरण की समस्या से निजात दिलवा दी है । आज के समय में आईवीएफ की विभिन्न तकनीकियों इक्सी, लेजर असिस्टेड हैचिंग, ब्लास्टोसिस्ट की सफलता बढ़ाने में क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर का बड़ा रोल है।
भारत में सर्वप्रथम आईवीएफ तकनीक में क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर उपयोग में लेने का श्रेय इन्दिरा आईवीएफ को मिलता है। ऑस्ट्रेलिया से तकनीक का प्रशिक्षण लेकर 2011 में आयात कर इसे शुरू किया गया, ग्रुप के सभी सेंटर्स में आईवीएफ में क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर का इस्तेमाल किया जाता है इससे यहाँ की आईवीएफ में सफलता दर अच्छी है।
2023
Guide to infertility treatments IVF
प्रेगनेंसी की खबर महिला को का�...
2023
IVF Guide to infertility treatments
पिछले कुछ वर्षों में टेस्ट ट्�...
2023
Estrogen is a very important hormone in a female’s body. It is especially ne...
2023
The happy news of pregnancy arrives after the successful completion of the fer...
2022
Guide to infertility treatments IVF
पिछले कुछ वर्षों में थायराइड �...
2022
पुरूष निःसंतानता शब्द कुछ सा�...
निःसंतानता एक ऐसी समस्या बनत�...
2022
समय के साथ हमारी प्राथमिकताओ�...
Get quick understanding of your fertility cycle and accordingly make a schedule to track it